नैनीताल :::- बसंत पंचमी को भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। बसंत  को ऋतुराज कहा जाता है इस ऋतु में प्रकृति फूलों से आच्छादित हो जाती है तथा प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है बसंत ऋतु का स्वागत है बसंत पंचमी। इस दिन से  शीत ऋतु समाप्त होने लगती है और प्रकृति में नई ऊर्जा का संचार होता है। खेतों में सरसों के पिले फूल खिलते हैं, जो बसंत पंचमी के प्रतीक रंग पीले को दर्शाते हैं तथा इस दिन लोग पीले वस्त्र व पीला रुमाल धारण  करते है ।
पृथ्वी पर बसंत के आगमन से चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तक  की ऋतु सौंदर्य ब्रह्मांड का अप्रतिम होता है जिसे आंखों से आत्मा तक पहुंचाने के लिए देवतागण भी माघ से लेकर चैत्र तक धरती पर  निवास  करते हैं ऐसा माना जाता है । प्राकृतिक उपक्रमों  से पूर्ण यह पर्व  ज्ञान का उत्सव होता है। विद्या की देवी सरस्वती का पूजा-अनुष्ठान करके वसंत के आगमन का स्वागत इसकी पहचान  है। चारों ओर पीत और श्वेत रंग , खेतों में फैली सरसों के शीर्ष पीत पुष्पों से गुंथे रहते हैं। हिमालय की पूरी श्रृंखला तुषार से युक्त हो श्वेताकर्षण  बनाती  है।
यह  दिन देवी सरस्वती  को समर्पित है जो ज्ञान, संगीत और शिक्षा की देवी हैं। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी, ज्ञान पंचमी ,ऋषि पंचमी भी कहा जाता है। यह त्योहार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है।  परंपराओं के अनुसार पूरे वर्ष को छह ऋतुओं में बांटा गया है, जिसमें बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु शामिल हैं। इन ऋतुओं में से बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा ऋतु राज भी  कहा जाता है । इस  वर्ष बसंत पंचमी 2 फरवरी को मनाई जाएगी।
वसंत के प्रभाव में प्रकृति के साथ मनुष्य का हृदय तथा आत्मा भी पीत-श्वेत  से भर कर रोमांचित होते हैं तथा   ज्ञान, विवेक और समुचित सांसारिक बुद्धि  के साथ सौंदर्यबोध का विकास  भी करता है ।मनुष्य ज्ञान और विवेक के बल पर प्रसन्न हो धरती के सभी जीवों, वन-वस्पतियों व घटनाओं के प्रति  संवेदनशील हो तो  जीवन आनंद से भर जाएगा ।  वसंत ऋतु में प्रकृति  के संदेश के कण-कण से प्रस्फुटित होता है।  

वसंत तो ऋतु के  मर्म तक पहुंचने का आरंभ है मात्र है तथा  वसंत पंचमी के चालीस दिवस बाद होलिका त्योहार संपन्न होता  है। होली के रंग मनुष्य को आत्मविभोर  करते है । 
प्राचीन भारत में  भी वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर बौर आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ , भंवरे मँडराने लगतीं।  वसंत ऋतु में विष्णु और कामदेव की पूजा  भी की जाती  हैं।
यह दिन विद्यार्थियों के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा इस खास दिन पर छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान  प्रारंभ तथा यज्ञोपवीत  तथा विवाह हेतु शुभ दिवस  माना  जाता है ।
इस दिन से जीवन में  नए कार्य ,गृहप्रवेश ,नया व्यवसाय , परियोजनाएं शुरू करते हैं।यह पर्व  समृद्धि और सौभाग्य  देने वाला है ।  धार्मिक मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती प्रकट हुई थीं ।
पौराणिक कथाओं  है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड में  सृष्टि की रचना  के साथ  ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद एक देवी प्रकट हुई। देवी के हाथ में वीणा थी। जिससे  संगीत बजाना शुरू हुआ तभी से ज्ञान का प्रस्फुटन हुआ । देवी को वाणी और ज्ञान की देवी  सरस्वती  और वीणा वादिनि के नाम से जाना जाने लगा। 

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