नैनीताल ::::- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
देवी भगवती दुर्गा की आराधना के लिए वर्ष में छह माह के अंतराल पर मुख्य दो नवरात्रि आती हैं। अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। मां भगवती की पूजा के लिए ये नौं दिन बहुत ही पवित्र पावन और विशेष माने जाते हैं। मान्यता है कि इस समय मां दुर्गा पृथ्वी लोक पर विचरण करते हुए भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करती हैं। मां दुर्गा को अपामार्ग के फूल पसंद है । देवी दुर्गा को शमी, अशोक, कनियार , अमलतास , गूमा, दोपहरिया, अगत्स्य, मदन, सिंदुवार, शल्लकी, माधवी लताएं, कुश की मंजरियां, बिल्वपत्र, केवड़ा, कदंब, भटकटैया, कमल के फूल प्रिय हैं। इसके अलावा लाल फूल, श्वेत कमल, पलाश, तगर, अशोक, चंपा, मौलसिरी, मदार, कुंद, लोध, कनेर, आक, शीशम और अपराजित आदि के फूलों से दुर्गा की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को गुड़हल का लाल फूल और सफेद कनेर का फूल बहुत पसंद है.।मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी को गुलदाउदी का फूल और वटवृक्ष के फूल चढ़ाया जाता है उनके प्रिय नारियल ,केला , सहद, गुड़, मेवा युक्त हलवा है। नवरात्रि के नौ दिनों में भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरुपों का पूजन करते हैं। प्रथम दिन मां शैलपुत्री, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी, तृतीय मां चंद्रघंटा, चतुर्थ मां कुष्मांडा , पंचम स्कंद माता, षष्टम मां कात्यायनी, सप्तम मां कालरात्रि, अष्टम मां महागौरी, नवम मां सिद्धिदात्री के पूजन का विधान है। शक्ति रूपी मां के हर स्वरुप में अलग विशिष्टता होती है। मां दुर्गा जिसे भगवती भी कहा जाता है उनकी आराधना व्यक्ति को मजबूत ,आत्मा को परमात्मा से जोड़ना तथा कर्म के प्रति उत्साहित करती है ।मां दुर्गा ऊर्जा एवं शक्ति माना जाता है दुर्गा का पहला स्वरुप शैलपुत्री माता है मां शैलपुत्री का पूजन प्रथम दिन किया जाता है । राजा शैल )(हिमालय ) की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। वृषभ पर विराजती दाहिने हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। इनकी पूजा से नवरात्रि के की यात्रा आरंभ होती है।
मां दुर्गा के नौं स्वरुपों में द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी हैं। ब्रह्मचारिणी अर्थात्तप का आचरण करने वाली। माता पार्वती के कठोर तप के कारण ब्रह्मचारिणी कहलाई। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप अत्यंत ज्योतिर्मय है। जिनके बांए हाथ में कमंडल तो दाहिने हाथ में ये माला होती हैं। इनकी उपासना से साधक को सदाचार, संयम की प्राप्ति होता है ।
मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा तृतीय शक्ति हैं। इस रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित हैं। मस्तक पर अर्द्ध चंद्र है इसी कारण ये चंद्रघंटा कहलाती हैं। इनके घंटे की ध्वनि से सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती है ।रंग स्वर्ण के समान चमकीला है तथा सिंह पर विराजती हैं। मां चंद्रघंटा का स्वरुप भक्तों के लिए कल्याण का मार्ग खोजती है।

मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप कूष्मांडा है मंद हंसी से ही ब्रह्मांड का निर्माण होने के कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। पुराणों के अनुसार जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब मां की ऊर्जा से ही सृष्टि का सृजन हुआ था। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, वे इनमें धनुष, बाण, कमल, अमृत, चक्र, गदा और कमण्डल धारण होता हैं। मां के आंठवे हाथ में माला सुशोभित रहती है। ये भक्त को भवसागर से पार उतारती हैं और उसे लौकिक-परालौकिक उन्नति प्रदान करती हैं ।
मां दुर्गा का पंचम स्वरुप स्कंदमाता है । गोद में कुमार कार्तिकेय को लिए हुए हैं और कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है, अतः स्कंद माता कहलाती हैं। सिंह जिनका वाहन और कमल आसन पर विराजती हैं । इनका स्वरुप स्नेहमय और मन को मोह लेने वाला है। इनकी चार भुजाएं में से दो भुजाओं में कमल तथा एक हाथ में वर मुद्रा में होती है। स्कंद माता सदैव अपने भक्तों के कल्याण हेतु तत्पर रहती हैं।

मां दुर्गा के षष्ठम स्वरुप मां कात्यायनी है । कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रुप में जन्म लिया था और ऋषि कात्यायन ने ही सर्वप्रथम इनका पूजन किया था। इसी कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह तेजमय एवम चमकीली है। इनकी चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयु मुद्रा में रहता है तो वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाई ओर के ऊपर वाले हाथ में मां तलवार धारण करती हैं तो वहीं नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है। सिंह मां कात्यायनी का वाहन है। इनका पूजन आलौकिक तेज प्रदान करता है ।
मां दुर्गा के सप्तम स्वरुप को कालरात्री कहा जाता है, यह सप्तमी में पूज्य है तथा इनका स्वरुप देखने में प्रचंड है लेकिन ये अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहते है। पुराण के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस का संहार करने के लिए मां ने यह भयानक रुप धारण किया था। इनकी पूजा से भक्त सभी तरह के भय से दूर हो जाता है। ये दुष्टों का विनाश करती हैं।
मां दुर्गा के आठवें स्वरुप को महागौरी कहा जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा-आराधना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार कठिन तपस्या के कारण पार्वती का शरीर काला पड़ गया था तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें गौरवर्ण प्रदान किया इसलिए ये महागौरी कहलाईं। ये श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं इसलिए इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहते है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी वाला हाथ अभय मुद्रा में तो वहीं नीचे वाले हाथ में मां त्रिशूल धारण करती हैं। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरु रहता है तो नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में रहता है। इनकी पूजा से पूर्वसंचित पापकर्म भी नष्ट हो जाते हैं तथा अमोघ फलदायिनी हैं जो भक्तों का कल्याण करती हैं।
मां दुर्गा के नौवें स्वरुप मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। सिद्धियों को प्रदान करने वाली है इनकी पूजा से भक्त को सिद्धियों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव को इन्हीं से सिद्धियों मिली तथा इन्हीं की अनुकंपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी (नारी) का हुआ, जिसके बाद वे अर्द्ध नारीश्वर कहलाए। ये कमल के फूल पर विराजती, सिंह इनका वाहन है। इनकी आराधना से भक्तो की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
देवी भागवत महापुराण में जगतजननी सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान देवी की आराधना, गुण, शक्ति के दर्शन, प्रकृति के निर्माण, उसका संचालन और संहार का पूर्ण वर्णन किया गया है ।ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवी दुर्गा का महामंत्र है, जिसमें तीन शक्तियों का आह्वान किया गया है। इस मंत्र में परम शक्ति शामिल है ।यह निर्वाण मंत्र है। नवरात्रि में अष्टमी एवम नवमी में हवन से नवरात्रि पूजन पूर्ण किये जाने की मान्यता भी है । नवरात्रि में कन्या पूजन श्रेष्ठ माना गया है । दुर्गा पूजा समारोह षष्टी से प्रारंभ होकर सप्तमी ,अष्टमी , नवमी का पूजन विशेष है ।इसी लिए कहा गया है की ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वने न न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च। मां दुर्गा की कृपा सभी जीवों पर बनी रहे तथा मानवता के प्रसार में उनका आशीष होना जरूरी है ।

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