नैनीताल :::- कुमाऊं विश्वविद्यालय डीएसबी परिसर में शनिवार को समान नागरिक संहिता की महत्व प्रावधानों और इसकी सामाजिक तथा कानूनी प्रभावों के बारे में जागरूकता के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो.एसडी शर्मा व विशिष्ट अतिथि प्रो.नुजहत परवीन खान एवं डॉ. सुरेश पांडे रहें।
इस दौरान कुलपति प्रो. डीएस रावत ने बताया कि शासन भी यह चाहता है कि इस तरह की कार्यशाला समान नागरिक संहिताओं की जटिलता को खत्म करके इसको लागू करने में सहायता प्रदान करें। कुलपति द्वारा उत्तराखंड राज्य जो पहला राज्य है जिसने समान नागरिक संहिता को 27 जनवरी 2025 को लागू किया गया। कुलपति ने 1835 में लॉ कमीशन की रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें भारतीय कानून में एकरूपता लाने की बात कही गई इसलिए इस समान नागरिक संहिता पर व्यापक रूप से विचार विमर्श होना चाहिए।
वहीं परिसर निदेशक प्रो. नीता बोरा शर्मा ने कार्यशाला की रूपरेखा बताते हुए कार्यक्रम की शुरुआत की उन्होंने बताया कि भारत जैसी बहुसंख्यक देश में समानता के लिए यह बड़ा कदम होगा उत्तराखंड ने इसकी क्रियान्वयन के लिए कदम बढ़ाया है। अभी तक लगभग 3400 की लगभग विवाह की रजिस्ट्रेशन 45 की लगभग वसीयत और चार पार्टनर ने लिविंग रिलेशन का रजिस्ट्रेशन किया है। सरकार ने लगभग 22 भाषाओं में इसको कन्वर्ट कर किया है ताकि किसी भी भाषा में इसको समझ सके। विभिन्न धर्म और संप्रदायों पर आधारित आसमान कानूनी प्रणालियों को समाप्त कर एक सामाजिक सद्भावऔर लैंगिक समानता को बढ़ावा मिले।
प्रो. नूजाहत परवीन खान ने कानूनी प्रावधानों से सभी को अवगत कराया और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में स्पष्ट रूप से राज्य को निर्देश दिया गया कि राज्य पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा। उन्होंने इसकी क्रियान्वयन के संदर्भ में भी विभिन्न चुनौतियों का जिक्र किया और समाधान की जानकारी दी।
डॉ.सुरेश पांडे ने संविधान के भाग में क्या कहा गया है और समर्थन में कौन कौन सी बातें हैं उसका उल्लेख उनके द्वारा किया गया। जो न्यायिक निर्णय हुए उसका भी उन्होंने उल्लेख किया और गोवा के यूनिफॉर्म सिविल कोड है उसके बारे में भी चर्चा की और उत्तराखंड का यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या कहता है। किस तरह से उसके मेंबर्स थे और उसके बाद वर्तमान समय में उसकी क्या महत्वपूर्ण जानकारी दी। अपनी पीपीटी के माध्यम से हाईलाइट किया और लागू होने के बाद होने वाले बदलावों से परिचित करवाया।
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मुख्य अतिथि प्रो. एसडी शर्मा ने के सामाजिक न्यायिक कानूनी प्रावधानों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला उन्होंने संविधान सभा में जो विचार विमर्श हुआ उसके बाद उस समय जो निष्कर्ष निकाला तत्पश्चात इसको निर्देशक तत्वों के अंतर्गत रखा गया और आने वाले समय में पूरे देश में लागू करने का प्रयास किया जाएं। प्रो.एसडी शर्मा ने उत्तराखण्ड राज्य के समान नागरिक संहिता के कानूनी पक्ष की बारीकियों को बहुत ही सरल तरीके से समझाया। उन्होंने बताया कि राज्य की जनजातियों को इसके बाहर रखा गया है। इस संबंध में उन्होंने संविधान के अनु. 342 को छात्रों के लिए व्याख्याचित किया। प्रो. शर्मा ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े हुए मुद्दों जैसे रजिस्ट्रेशन, टर्मिनेशन, सजा के प्रावधान आदि के बारीक पहलुओं को छात्रों के सामने रखा। उन्होंने बताया कानून को सभी छात्र और छात्राओं को पढ़ना तथा जानना व कानून की आम जीवन में क्या महत्ता है इस बात को भी रेखांकित किया। उन्होंने उत्तराखण्ड के ही सायरा बानो केस का हवाला देते हुए बताया कि इस केस के बाद ही संसद ने ट्रिपल तलाक पर कानून बनाया। विवाह तलाक विरासत उत्तराधिकार गोद लेने जैसी विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई।
सत्येन्द्र तिवारी ने बताया कि समान नागरिक संहिता किस तरह से लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक महिला को जो किसी भी धर्म या जाति की हो, उत्सको सम्मान के साथ जीने का अधिकार होना चाहिए और समान नागरिक संहिता संविधान वो अनुच्छेद 14,15,21 और 44 को साकार करते हुए प्रत्येक महिला को विवाह. सिवाँस, उत्तराधिकार और विरासत में समान अधिकार देता है। यह राज्य की आधी आबादी के सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम है।
इस दौरान वाणिज्य संख्याएं प्रो.अतुल जोशी,प्रो.पदम बिष्ट,प्रो. ज्योति जोशी,प्रो.संजय घिल्डियाल, प्रो.प्रियंका, प्रो. अर्चना श्रीवास्तव, प्रो. जया तिवारी, प्रो. हरीश बिष्ट,प्रो. छवि आर्या,प्रो. शुचि बिष्ट,प्रो.पूनम बिष्ट, डॉ. भूमिका,डॉ. हृदेश,डॉ. रुचि,डॉ. मोहित रौतेला, डॉ.नेत्रपाल सिंह, आनन्द सिंह रावत, मोनिका बिष्ट, डॉ. किरन तिवारी, दीपा गोस्वामी,नीलम, इन्द्रा समेत अन्य लोग रहें।
कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर पंकज सिंह नेगी ने किया