नैनीताल :::-डीएसबी परिसर राजनीति विज्ञान विभाग सहायक प्राध्यापक डॉ.पंकज सिंह नेगी ने बताया की जम्मू–कश्मीर का महत्व केवल भारत तक ही सीमित न होकर  बल्कि पूरे विश्व में है।अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में मूल रूप से अनुच्छेद 306 (ए) के रूप में गोपालस्वामी आयंगर के प्रस्ताव के बाद शामिल किया गया था, उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आशा व्यक्त की थी कि धारा 370 समय बीतने के साथ-साथ समाप्त हो जाएगा लेकिन  अनुच्छेद 370 भारत के आजादी के 70 से भी अधिक वर्ष तक भारत के संविधान में बना हुआ था।
अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान के भाग 21 में “अस्थाई व संक्रमणकालीन” प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था जिसके कारण जम्मू–कश्मीर को यह छूट दी गई थी कि वह अपने राज्य के लिए अलग संविधान का निर्माण। कर सके और राज्य में संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर सके। जबकि भारत की संघात्मक व्यवस्था में भारत को “राज्यों का संघ” घोषित किया गया है जिसके तहत राज्यों को संघ से अलग संविधान बनाने का अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन हमारे संविधान में कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, इसी के तहत जम्मू–कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान किया गया था,विशेष दर्जा प्राप्त करने के बाद जम्मू –कश्मीर राज्य के संविधान निर्माण के लिए 31 अक्टूबर 1951 को संविधान सभा का विधिवत गठन हो गया और 26 जनवरी 1957 को जम्मू–कश्मीर में इस संविधान को विधिवत लागू कर दिया गया। धारा 370 को भारतीय संविधान में विशेष परिस्थितियों के आधार पर  कश्मीरी जनमानस की भलाई के उद्देश्य से जोड़ा गया था लेकिन यह धारा जम्मू–कश्मीर के आम जनमानस की भलाई करने में असफल रही, जिसे देखते हुए मोदी सरकार ने पांच वर्ष पूर्व 5 अगस्त 2019 को संवैधानिक आदेश (सी.ओ 272) एवं (सी.ओ 273 )के जरिए संवैधानिक आदेश 1954 को रद्द कर दिया और भारत के संविधान के सभी प्रावधानों जम्मू–कश्मीर में लागू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप  अनुच्छेद 370 खत्म हो गया और 35 (ए) स्वत: निष्प्रभावी हो गया, अनुच्छेद 370 के संवैधानिक रूप से निष्प्रभावी होने के पश्चात जम्मू कश्मीर का संविधान और विशेष दर्जा समाप्त हो गया। मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद जम्मू–कश्मीर में कई राजनीतिक–प्रशासनिक बदलाव आए हैं।

जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 के संसद से पारित होने व राष्ट्रपति की सहमति के बाद 31 अक्टूबर 2019 से जम्मू–कश्मीर विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश के रूप में परिवर्तित हो गया जिसके परिणामस्वरुप राज्यपाल के संवैधानिक पद को “लेफ्टिनेंट गवर्नर” में परिवर्तित कर दिया गया है।

5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू और कश्मीर की शासन प्रणाली में भी बदलाव आया। धारा 370 के निरस्तीकरण के बाद अक्टूबर 2020 में जम्मू कश्मीर ने “जम्मू पंचायती राज कानून “को अपनाया जिसके तहत अब जम्मू कश्मीर के हर जिले में जिला विकास परिषद (डी.डी.सी )का गठन कर दिया गया है। हर डी.डी.सी में 14 सदस्य सीधे निर्वाचित होंगे इस तरह से पूरे जम्मू कश्मीर के 20 जिलों से 280 सदस्य डी.डी.सी. में निर्वाचित हो गए हैं। डी.डी.सी. ने राज्य में पहले से चल रहे जिला विकास बोर्ड (डी.डी.बी)की जगह ली।

अनुच्छेद 370 के समापन के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू–कश्मीर में पंचायती राज व्यवस्था को लागू कर दिया है जिसके पश्चात जम्मू कश्मीर में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हो गई है जिसके कारण ही पंचायत व खंड विकास  परिषद और जिला विकास परिषद का जम्मू कश्मीर में गठन हो गया है।

अनुच्छेद 370 और 35 (ए) के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में भारत संघ के 170 से अधिक कानून लागू हो गए हैं इसके साथ ही जम्मू–कश्मीर राज्य के 160 से अधिक कानूनों को समाप्त कर दिया गया है तथा जम्मू -कश्मीर राज्य के लगभग 160 कानूनों को भारतीय संविधान के अनुरूप अनुकूलित कर दिया गया है।

धारा 370 के समाप्त होने के पिछले दो-तीन वर्षों के बाद पर्यटकों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है पर्यटकों की संख्या को देखते हुए नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन की पहचान की जा रही है।

अनुच्छेद 370 हटाने के ऐतिहासिक कदम के बाद सरकार ने कश्मीरी पंडितों के जमीनों पर हुए कब्जे तथा दबाव में जमीन बेच डालने वाले मामलों में सख्ती दिखाई है, इसके अतिरिक्त जम्मू- कश्मीर में पहली बार पंचायती चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण तथा जम्मू -कश्मीर के सिक्खों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल चुका है।
                                        
केंद्र सरकार द्वारा  अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर कैडर का ए.जी.एम.यू.टी. (अरुणाचल प्रदेश,गोवा,मिजोरम और केंद्र शासित क्षेत्र) में विलय कर दिया गया क्योंकि जम्मू कश्मीर राज्य ने पुनर्गठन के बाद अपना राज्य का दर्जा खो दिया था। ए.जी.एम.यू.टी में विलय के बाद जम्मू कश्मीर के अधिकारियों को अब आठ केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश. गोवा और मिजोरम राज्यों में भी किसी में भी भेजा जा सकता है।

अनुच्छेद 370 के संवैधानिक रूप से निष्प्रभावी होने के बाद जम्मू कश्मीर में डोमिसाइल और भूमि कानून में आमूलचूर्ण परिवर्तन आया है केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2020 को अधिसूचना जारी कर कहा कि कोई भी व्यक्ति जो 15 साल से केंद्र शासित प्रदेश में रह रहा है या जिसने 7 साल तक कश्मीर में पढ़ाई की है. और 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा दी है वह व्यक्ति जम्मू कश्मीर का डोमिसाइल हासिल कर सकता है डोमिसाइल कानून ने स्थाई निवास प्रमाण पत्र (पी.आर.सी) जारी करने की पुरानी प्रणाली की जगह ली है नए डोमिसाइल नियम लागू होने के बाद लाखों लोगों को डोमिसाइल प्रमाण पत्र मिल चुका है।

अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में प्रमुख घटनाक्रमों में से एक विशेष कार्यबल (एस.टी.एफ.) का गठन है जम्मू कश्मीर प्रशासन ने राज्य की सुरक्षा के खिलाफ गतिविधियों में संलग्न लोक सेवकों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए विशेष कार्य बल का गठन कर दिया है।

अनुच्छेद 370 के हटने के फैसले के बाद अब जम्मू–कश्मीर में दरबार मूव प्रथा का अंत हो गया है, जम्मू कश्मीर भारत का दो राजधानी वाला राज्य था जहां हर 6 महीने पर दरबार मूव यानी (दरबार का तबादला) प्रक्रिया चलती रहती थी जिसके तहत जम्मू और कश्मीर में सचिवालय परिवर्तन होता रहता था लेकिन जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जून 2021 में कहा कि अब जम्मू कश्मीर प्रशासन पूरी तरह से ई-ऑफिस में बदल गया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 व 35 (ए) के निष्प्रभावी होने के बाद जम्मू–कश्मीर के लोग सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन से लाभान्वित हो रहे है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन–आरोग्य योजना के तहत जम्मू कश्मीर के करीब 5 लाख लोगों का अब तक सत्यापन किया जा चुका है, वही पीएम किसान योजना से जम्मू  और कश्मीर के 12 लाख से अधिक लोग लाभान्वित हो रहे हैं और पीएम आवास योजना से लगभग 1.3 लाख से अधिक घर स्वीकृत हो चुके हैं, इसके अतिरिक्त पीएम उज्जवला योजना के अंतर्गत लाखों लोगों  को एलपीजी गैस कनेक्शन मिल चुके हैं।

अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद जम्मू कश्मीर को मुख्य धारा से जोड़ने की पहल की जा रही है जिसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर में सात नए मेडिकल कॉलेजों और पांच नए नर्सिंग कॉलेज को मंजूरी मिल चुकी है वहीं चेनाब नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा पुल तैयार हो चुका है इन सबके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने उद्योग,पर्यटन,वित्त,तकनीकी शिक्षा विभाग के जरिए जम्मू कश्मीर में कई बदलाव किए हैं।

अनुच्छेद 370 के समापन के बाद जम्मू कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण बदलाव में से एक लोकसभा व विधानसभा सीटों का परिसीमन है, परिसीमन आयोग का गठन मार्च 2020 में सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में की गई, जिसकी रिपोर्ट मई 2022 में जारी की गई। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के उपरांत जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है जिसके तहत जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में सीटों की संख्या 47 निर्धारित की गई है। परिसीमन आयोग ने सात सीटें अनुसूचित जाति (एस.सी) व पहली बार नौ सीटें अनुसूचित जनजाति (एस.टी) वर्ग के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव दिया है। परिसीमन आयोग ने दो कश्मीरी पंडितों के मनोनयन  व पी.ओ.के.  से विस्थापित लोगों को भी प्रतिनिधित्व देने की बात कही, इसके अतिरिक्त आयोग ने लोकसभा की पांचों सीटों का पुनर्निर्धारण कर विधानसभा के 13 निवार्चन क्षेत्रों के नाम भी परिवर्तन कर दिया हैं।

अनुच्छेद 370 के संवैधानिक रूप से निष्प्रभावी होने के बाद जम्मू–कश्मीर में कई राजनीतिक–प्रशासनिक बदलाव हुए हैं, केंद्र सरकार द्वारा पांच वर्ष पूर्व लिए गए इस निर्णय को 11 दिसंबर 2023 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही व उचित ठहराया पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की प्रक्रिया वैध है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रजा परिषद व डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा:— दो प्रधान!दो निशान! दो विधान! के खिलाफ उनका बलिदान आजादी के 75 वर्षों के बाद रंग लाया!

                

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