नैनीताल:::- कुमाऊँ विश्वविद्यालय स्थित बुरांश सभागार में शुक्रवार को सुप्रसिद्ध हिंदी लेखिका शिवानी की जयंती के अवसर पर “शिवानी का कथा साहित्य: प्रकृति और संवेदनशीलता” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और महादेवी वर्मा सृजन पीठ, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।


संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत ने शिवानी के साहित्य की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और कहा कि शिवानी ने जिस तरह अपने पात्रों के माध्यम से पहाड़ी जीवन, संस्कृति और पर्यावरण को प्रस्तुत किया है, वह हिंदी साहित्य में अनूठा है। उनका लेखन केवल कहानियाँ नहीं, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज़ है, जो हमें अपने आसपास की प्रकृति और समाज को समझने का एक नया दृष्टिकोण देता है।

साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद के सदस्य प्रो. डीएस पोखरिया ने विषय प्रवर्तन करते हुए शिवानी की रचनाओं में भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिवानी का कथा साहित्य हमारी परंपरा, प्रकृति और मानवीय संबंधों का जीता-जागता दस्तावेज़ है। उन्होंने नारी मनोविज्ञान को गहराई से समझा और अपनी रचनाओं में उसे बेबाकी से प्रस्तुत किया।उन्होंने शिवानी की रचनाओं को समय और समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता से भरी साहित्यिक कृतियाँ बताया।

बीज वक्तव्य प्रो. दिवा भट्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें उन्होंने शिवानी के साहित्यिक योगदान की गहराई और उनकी रचनाओं में प्रकृति तथा मानवीय संवेदनाओं की महत्ता को रेखांकित किया। इस सत्र का संचालन श्री मोहन सिंह रावत ने किया और अंत में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष मौर्य ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य शिवानी के साहित्य में छिपी प्रकृति की सुंदरता और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को समझना है, जो हिंदी साहित्य में एक अनमोल योगदान है।


द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने की। इस सत्र में प्रो. निर्मला ढैला बोरा, प्रो. सिद्धेश्वर सिंह और डॉ. रूपा सिंह ने वक्तव्य प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने शिवानी की कहानियों में सामाजिक संवेदनशीलता और उनके पात्रों में प्रकृति के प्रति गहरे लगाव की चर्चा की। इस सत्र का संचालन डॉ. अनिल कार्की द्वारा किया गया।

 
तृतीय सत्र की अध्यक्षता रजनी गुप्त ने की, जिसमें प्रो. चन्द्रकला रावत, प्रो. दिनेश कर्नाटक और प्रो. अनिल कार्की ने अपने विचार साझा किए। वक्ताओं ने शिवानी के कथा साहित्य में पहाड़ी जीवन, संस्कृति, और पर्यावरण की अभिव्यक्ति पर विस्तृत चर्चा की। इस सत्र का संचालन प्रो. सिद्धेश्वर सिंह ने किया। कार्यक्रम का समापन मोहन सिंह रावत द्वारा आभार ज्ञापन के साथ हुआ। इस संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के अनेक प्राध्यापक, शोधार्थी और साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का उद्देश्य शिवानी के साहित्य में प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं के अद्भुत चित्रण पर विचार-विमर्श करना था जो हिंदी साहित्य में एक अनमोल योगदान है।

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