नैनीताल:::- कुमाऊँ विश्वविद्यालय के निदेशक एवं विजिटिंग प्रोफेसर, निदेशालय प्रो. ललित तिवारी ने हजारी राजकीय महाविद्यालय, दामोह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में “क्लाइमेट चेंज एंड इट्स इफेक्ट ऑन हिमालय” विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान दिया।

अपने संबोधन में प्रो. तिवारी ने कहा कि हिमालय विश्व का तीसरा “वाटर टावर” है, जो हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला के माध्यम से लगभग तीन अरब लोगों को खाद्य एवं ऊर्जा प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसी गैसें तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण बन रही हैं, जिससे दिन और रात दोनों अधिक गर्म हो रहे हैं।

प्रो. तिवारी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु बेसिन पर देखा जा रहा है, जिससे पलायन, सांस्कृतिक हानि और मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि चीड़ के जंगल बढ़ रहे हैं जबकि ओक की प्रजातियाँ कम हो रही हैं, साथ ही क्वार्कस सेमिकारपिफोलिया जैसी प्रजातियाँ ऊँचाई की ओर खिसक रही हैं।

उन्होंने बताया कि मानसून और तापमान में असंतुलन के कारण कई पेड़ों के बीज अंकुरण पर असर पड़ा है। निचले इलाकों में सेब का उत्पादन घटा है जबकि ऊँचाई वाले क्षेत्रों में यह अपेक्षाकृत सुरक्षित है। पिछले पचास वर्षों में हिमालय की टिंबर लाइन लगभग 10 प्रतिशत कम हुई है।

प्रो. तिवारी ने बुरांस, बांज और प्रणुस जैसे वृक्षों का उदाहरण देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन से इकोसिस्टम सर्विसेज, फसलें, जंगल और मनुष्य सभी प्रभावित हो रहे हैं। यूपाटोरियम, एगर्टिना, लैंटाना और पार्थिनियम जैसी आक्रामक प्रजातियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे वनाग्नि का खतरा भी बढ़ा है।

उन्होंने कहा कि अब समय है कि मनुष्य जलवायु परिवर्तन शमन (Climate Change Mitigation) में रचनात्मक भूमिका निभाए ताकि सतत विकास की अवधारणा को संतुलित किया जा सके।

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