नैनीताल :::-  कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी ने एमएमटीटीसी द्वारा आयोजित फैकल्टी इंडक्शन कार्यक्रम में “औषधीय पौधों का वितरण एवं आर्थिकी में योगदान” विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि औषधीय पौधों का इतिहास 3000 ईसा पूर्व सुमेरियन सभ्यता से जुड़ा है। सुश्रुत संहिता में 700 औषधीय पौधों का उल्लेख मिलता है। विश्वभर में 50–70 हजार औषधीय एवं सुगंधित पौधे पाए जाते हैं, जिनका लगभग 80% दोहन जंगलों से होता है।

वर्तमान में तुलसी, नीम, अदरक, आंवला, ब्राह्मी, लौंग, इलायची, काली मिर्च, हल्दी, ईसबगोल, सिकोना और अश्वगंधा जैसे पौधे मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उत्तराखंड में 701 औषधीय पौधों में से 250 का बाजार में कारोबार होता है। वैश्विक स्तर पर औषधीय पौधों का व्यापार 14 अरब डॉलर का है, जो आने वाले 25 वर्षों में और बढ़ेगा।

प्रो. तिवारी ने किलमोरा, सन पत्ता, पीपली, वासा सहित अष्टवर्ग पौधों की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने इनके संरक्षण, खेती और मार्केटिंग को सतत विकास एवं मानव कल्याण के लिए आवश्यक बताया। कार्यक्रम में देशभर के विभिन्न राज्यों से सहायक प्राध्यापक शामिल हुए।

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