नैनीताल :::- कुमाऊं विश्वविद्यालय डीएसबी परिसर के संस्कृत विभाग में बुधवार को व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रो.दिनेश चन्द्र शास्त्री (कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय) हरिद्वार ने कहा कि वैदिक साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा का सबसे प्राचीन और मूल स्रोत है जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति और दार्शनिक सोच की जड़ों को समझने में मदद करता है।
प्रो.शास्त्री ने कहा कि इसमें मुख्यत: चार वेद आते हैं। वेदों में वर्ण व्यवस्था, जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) और आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास) का विवरण मिलता है जो समाज के संतुलन हेतु बनाए गए थे। भारतीय ज्ञान परंपरा में योगदान गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, स्थापत्य तथा कृषि आदि क्षेत्रों में वैदिक ज्ञान ने आधार प्रदान किया गया है। कहा कि भाषा, संगीत और काव्य की मूल प्रेरणा भी वेदों से ही मानी जाती है और वहाँ लिखित रूप में विद्यमान भी है, जैसा कि कहा गया है पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्यति, सामवेद संगीत विद्या का प्राचीन इतिहास है। इस मौके पर व्याख्याता डॉ.राज मंगल यादव ने वैदिक कालीन समाज एवं परिवार व वैदिक युगीन गुरुकुल परम्परा एवं वैदिक यज्ञों के महत्व पर अपना व्याख्यान दिया।
डॉ0ओमकार ने अपने व्याख्यान में कहा कि समग्र वैदिक वाड्मय में विज्ञान के स्रोत विद्यमान हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रदीप कुमार ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 सुषमा जोशी ने किया। इस मौके पर संस्कृत विभाग की अध्यक्ष प्रो. जया तिवारी समेत प्रो. शालिम तबस्सुम, प्रो. शहराज अली, डॉ. लज्जा भट्ट समेत अन्य लोग रहें।
