नैनीताल:::- उत्तराखंड का लोक पर्व फूलदेई शुक्रवार को मनाया जा रहा है। इस लोक पर्व में बच्चे फूलों के साथ घर-घर जाकर लोकगीत फूल देई, छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार गाते हैं, वास्तव में देखा जाए यह लोक पर्व हमारी समृद्धि व खुशहाली से जुडा पर्व है। लोकपर्व फूलदेई को लेकर कुमाऊं विश्वविद्यालय डीएसबी परिसर के वरिष्ठ वनस्पतिशास्त्री व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी का कहना है कि फूलदेई की विशेषता यह कि घर में सुख शांति के लिए देहली का पूजा जाता है जो घर का रास्ता है जिसका अर्थ है फूल देई फूलों से घर की देहली शोभायमान हो, छम्मा देई घर में शांति और दया हो, दैणी द्वार घर सबका भाग्यशाली और सफल हो जबकि भर भकार का मतलब घर में हमेशा अन्न और धन का भंडार रहे। ये देली बारम्बार नमस्कार घर को बार-बार प्रणाम,

फूले द्वार घर के द्वार हमेशा फूलों से सुशोभित रहे। यह लोक पर्व बसंत ऋतु राज के प्राकृतिक स्नेह का प्रतीक है और यह प्रकृति पूजा और जगत कल्याण का उत्सव है। इसी दिन से उत्तराखंड में बेटियों को भिटोली दिए जाने का समय प्रारंभ होता है जो एक माह तक चलता है। सांस्कृतिक विरासत के साथ यह पर्व चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि पंच. ांग के अनुसार चौत्र मास से ही नववर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन बच्चे घरों की देहली पर फूल तथा चावल बिखरते हैं और लोकगीत गाकर समृद्धि की कामना की जाती है। प्रो. तिवारी के मुताबिक फूलदेई पर्व केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक है तथा प्रकृति संरक्षण के प्रति जागरूक करता है। बच्चों को इस पर्व के माध्यम से वनस्पतियों और फूलों के महत्व को समझने का मौका मिलता है।

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