नैनीताल :::- भारतीय संस्कृति की विशेष पहचान पूर्वजों का सम्मान है, भाद्रपद तथा आश्विन माह में आने वाला पितृ पक्ष या पितरपख 16 दिनों की वह अवधि है, जिसमें हिन्दू परिवार अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। इसे सोलह श्राद्ध, महालय पक्ष और अपर पक्ष भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता
भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 25 में बताया गया है कि – पितरों की पूजा करने वाला पितरों को, देवताओं की पूजा करने वाला देवताओं को और परमात्मा की पूजा करने वाला परमात्मा को प्राप्त करता है।
पुराणों के अनुसार इस अवधि में पितरों की आत्माएं धरती पर आकर अपने वंशजों के पास आती हैं। इसलिए पितरों का तर्पण और पिंडदान धार्मिक कर्तव्य माना गया है। इससे पितृ दोष से मुक्ति भी मिलती है।
श्राद्ध और परंपरा
श्राद्ध में काला तिल, जौ, चावल, कुश, गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, फल-फूल, पान-सुपारी, जनेऊ, रोली-हल्दी, दीपक, अगरबत्ती आदि का प्रयोग होता है।
पितृ पक्ष में नई चीज़ें खरीदना, नया काम शुरू करना या नए कपड़े पहनना वर्जित है।
नवमी को मृत माताओं का श्राद्ध और अंतिम दिन सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 21 सितंबर, 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ सम्पन्न होगा।
पौधों का महत्व
श्राद्ध पक्ष में पीपल, बरगद, तुलसी, अशोक और बेल के पौधे लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि –
पीपल में पितरों का वास होता है।
बरगद दीर्घायु और मोक्ष देने वाला है।
तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है।
अशोक घर में सुख-समृद्धि लाता है।
बेलपत्र भगवान शिव से संबंधित है।
