नैनीताल::- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर राज्य की महिला कामगार आशाओं की समस्याओं का तत्काल समुचित समाधान किए जाने को लेकर आशा हेल्थ वर्कस यूनियन ने शनिवार को बीडी पांडे अस्पताल के पीएमएस के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया।

इस दौरान आशा कार्यकर्त्ताओं ने ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज की सरकारें व सरकारों के पक्ष के लोग महिला दिवस को महिलाओं के नाच-गाने, खुशी मनाने या पार्टी करने के रूप में मनाते हैं और इसी रूप में महिला दिवस का प्रचार करते हैं। पूंजीवादी सरकारें व उनके समर्थक महिला दिवस के इतिहास और संघर्ष को महिलाओं व आमजन से छिपाना चाहते हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक संघर्षशील, कामकाजी, मेहनत करने वाली महिलाओं को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास को जानना बहुत जरूरी है। आज के दौर में महिलाएं फैक्ट्रियों में, आशा-आंगनबाड़ी, भोजनमाता जैसी स्कीमों में, स्वयं सहायता समूह के तहत विभिन्न कामों में कार्यरत है और आर्थिक रूप से अपने पांव पर खड़ा होना चाहती है। लेकिन फैक्ट्री मालिक व खुद सरकारें उनकी मेहनत का शोषण कर रही हैं। तब ज्यादा जरूरी हो जाता है कि महिला दिवस के इतिहास और संघर्ष से प्रेरणा लेकर अपने हक अधिकार को पाने की लड़ाई को और तेज किया जाए। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई से शुरू हुआ। और अलग अलग दौर में महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक बराबरी हासिल करने के संघर्षों का जरिया बना । और यह तब तक चलता रहेगा जब तक महिलाओं के अधिकारों को हासिल करने की लड़ाई जारी रहेगी।

राज्य में आशा जैसी स्कीम वर्कर्स स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहमूल्य काम कर रही हैं जो ऐसी सेवा है जो कि पूरी तरह सरकारी व बेहतर गुणवत्ता वाली होनी चाहिए। लेकिन हर सरकारी विभाग का निजीकरण कर देने की नीति व ठेका प्रथा जैसी गलत व्यवस्थाओ का हमारी पंजीवादी सरकारों ने अपनाया हुआ है।

आशा वर्कर्स को सरकार ने एक स्कीम के तहत स्वयंसेवी के रूप में नियुक्त किया। स्वंय की इच्छा से एक इंसान कब तक मुफ्त में काम करेगा। सरकार रोज नए नए काम आशाओं पर जबरन थोप रही है और न करने पर काम से हटाने की धमकी देती है। स्वास्थ्य विभाग का हर छोटे से बड़ा काम आशाओं के सिर पर थोप दिया जाता है। लेकिन वेतन के नाम पर राज्य सरकार द्वारा लागू दस हजार के लगभग न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जाता है। सरकार प्राइवेट कम्पनियों से भी ज्यादा शोषण आशाओं का कर रही है। यही हाल अन्य स्कीम वर्कर्स आंगनबाड़ी और भोजनमाता का भी है। आशा वर्कर्स सालों से मांग कर रही हैं कि जब वे स्वास्थय विभाग का हिस्सा है तो उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। आशाएं यूनियन बनाकर अपनी लड़ाई लड़ रही हैं। उत्तराखण्ड में ऐक्टू के नेतृत्व में उनकी लड़ाई चल रही है। पूरे देश में भी आशा वर्कर्स समेत स्कीम वर्कर्स के रूप में काम कर रही लाखों महिलाओ का संघर्ष जारी है।

डीजी हेल्थ उत्तराखंड द्वारा आशाओं के मानदेय को लेकर बनाए गए 2021 के प्रस्ताव को लागू तत्काल लागू किया जाएं। न्यूनतम वेतन, कर्मचारी का दर्जा व सेवानिवृत होने पर सभी आशाओं को अनिवार्य पेंशन का प्रस्ताव राज्य मंत्रिमंडल से पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाएं। सेवानिवृत्त होने वाली आशाओं को मासिक पेंशन का प्रावधान नहीं किया जाता तब तक रिटायरमेंट के बाद 10लाख कि धनराशि दी जाएं। विभिन्न मदों के लिए दिए जाने वाला धनराशि  हर महीने दिया जाएं । टेनिंग के दौरान प्रति दिन पांच सौ रुपए का भुगतान किया जाएं।  सभी सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के खाली पदों को तत्काल भरा जाएं ।

इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल,प्रेमा अधिकारी, निर्मला चंद्रा,चन्द्रा सती,प्रभा बिष्ट,नीलम बिष्ट,शांति आर्य,कमला बिष्ट, सुधा आर्य,ममता आर्य, पूनम आर्य समेत अन्य आशा कार्यकर्त्ता मौजूद रही।

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