अल्मोड़ा/उत्तराखंड:::- उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच बसे सनणा गांव में जन्म और पले-बढ़े दिव्य अर्जुन रौतेला ने भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बनकर सफलता की नई कहानी लिखी है। 14 दिसंबर को देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) की पासिंग आउट परेड में वह आधिकारिक रूप से सेना का हिस्सा बने। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गौरव का विषय बन गई है।

दिव्य अर्जुन का सफर यह साबित करता है कि अगर आपके इरादे मजबूत हों और मेहनत सच्चे दिल से की जाए, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।

जिले के दुर्गम गांव सनणा में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे दिव्य अर्जुन ने अपने हालातों को अपनी प्रेरणा बनाया। उनके पिता मदन रौतेला एक शिक्षक रहे हैं और अब खेती-किसानी करते हैं, जबकि उनकी मां गीता रौतेला गृहिणी हैं। कठिनाइयों से भरे बचपन ने दिव्य को कमजोर नहीं किया, बल्कि उनके इरादों को और मजबूत बना दिया।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई नवोदय विद्यालय, ताड़ीखेत से की और बाद में एनीमेशन में डिग्री प्राप्त की। हालांकि, उनका असली सपना भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना था।

दिव्य अर्जुन ने बिना किसी कोचिंग या विशेष मार्गदर्शन के सेल्फ-स्टडी के दम पर पहले ही प्रयास में यूपीएससी सीडीएस परीक्षा पास की। उन्होंने कठिन प्रशिक्षण के बाद रेजिमेंट ऑफ रॉकेट्स (आर्टिलरी) में स्थान पाया।

दिव्य कहते हैं, “यह सफलता केवल मेरी नहीं, बल्कि उन सभी के लिए है, जो सपने देखने की हिम्मत रखते हैं। अगर मैं, एक साधारण पृष्ठभूमि से आकर, इसे हासिल कर सकता हूं, तो कोई भी कर सकता है।”



पासिंग आउट परेड में दिव्य के माता-पिता, नाना कुबेर रौतेला, और भाइयों हर्षित रौतेला एवं अभिषेक नेगी ने उन्हें वर्दी में देखा। यह पल उनके लिए गर्व और भावनाओं से भरा हुआ था। दिव्य के पिता ने कहा, “हमने हमेशा अपने बेटे को बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की प्रेरणा दी। उसकी सफलता ने पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया।”


दिव्य अर्जुन रौतेला की कहानी सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह हर युवा के लिए एक ‘ज्योतिपुंज’ है। उनकी यात्रा यह संदेश देती है कि संघर्ष के बावजूद अपने सपनों को हासिल किया जा सकता है।

उनका कहना है, “सपने देखो और उन्हें सच करने की ठान लो। मेहनत और ईमानदारी से किया गया हर प्रयास रंग लाता है।

दिव्य अर्जुन रौतेला का सफर उन सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो अपने हालातों से लड़ते हुए बड़े मुकाम हासिल करना चाहते हैं। उनकी यह सफलता उत्तराखंड की उस भूमि से एक प्रकाशपुंज की तरह उभरी है, जो कठिन परिस्थितियों के बावजूद हमेशा दुनिया को नई ऊंचाइयों पर ले जाती है।

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