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पिथौरागढ़:::- संत नारायण स्वामी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नारायण नगर में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर संगोष्ठी एवं भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. सुधीर तिवारी ने की जबकि संचालन डॉ. विवेक आर्या ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ बी.ए. प्रथम सेमेस्टर की छात्रा काजल ने भूमिका प्रस्तुत कर किया। इसके बाद भाषण प्रतियोगिता आरंभ हुई, जिसका मूल्यांकन डॉ. सारिका वर्मा एवं डॉ. मनोज कुमार ने किया। प्रतियोगिता में तृतीय स्थान रिद्धिमा (बी.ए. प्रथम सेम.) एवं मोहम्मद अनस (बी.एससी. प्रथम सेम.), द्वितीय स्थान योगेंद्र (बी.ए. प्रथम सेम.) तथा प्रथम स्थान खुशी मेहता (एम.ए. राजनीति विज्ञान, प्रथम सेम.) ने प्राप्त किया।

समापन सत्र में डॉ. सुधीर तिवारी ने आत्महत्या जैसे संवेदनशील विषय पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों से घबराने के बजाय सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने छात्रों को जीवन के महत्व और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया।

कार्यक्रम में डॉ. सुधीर कुमार तिवारी, डॉ. शुभम, डॉ. दिनेश कोहली सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

One thought on “पिथौरागढ़ : संत नारायण स्वामी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर संगोष्ठी”
  1. नमस्कार मैडम💐💐
    मैडम छात्रों में आत्महत्या के प्रति जो दृष्टिकोण है उसकी हमें हर दृष्टि से निरीक्षण करना होगा क्योंकि यह जो समस्या है यह निरंतर बढ़ ही रही है।आज विद्यार्थियों के ऊपर पढ़ाई का बहुत प्रेशर होता है उसे बहुत अधिक मार्क्स लाने होते हैं तभी उसकी अगली क्लास में प्रवेश हो पता है। इसके साथ ही साथ बच्चों के ऊपर पढ़ाई के बाद रोजगार का प्रेशर भी होता है।मैडम जो बच्चे बहुत ज्यादा तेज होते हैं पढ़ाई में, उनकी लाइफ में एक ऐसा मोड़ आता है कि वह किसी व्यक्ति विशेष के प्रति प्रेम करने लग जाती है अथवा लग जाता है और इस प्रेम के मकर जाल से, यह भंवर से, कई अपने को उभार दलेते हैं और कई विद्यार्थी इसी में उलझ जाते हैं।उसका यह नतीजा होता है कि वह ना तो अपनी पढ़ाई के ऊपर ध्यान दे पाते हैं और ना ही अपने प्रेम को ढंग से समझ पाते हैं वह भावनात्मक रूप से बहुत टूट जाते हैं बिखर जाते हैं,अपनी बात किसी को बता नहीं पाते हैं और अंदर ही अंदर बहुत बिखर जाते घुट जाते हैँ, उन्हें किसी के साथ अच्छा नहीं लगता, अकेले रहने लग जाते हैँ मन में समय समय पर बहुत सर बाते आती है कोई उन्हें समझ नहीं पता या वे किसी को समझा नहीं पाते हैँ और अंत में वह आत्महत्या का एक सरल शब्द चुन लेते हैं जो कि एक अच्छे इंसान या कहीं एक अच्छे व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा होता है तो मुझे लगता है कि हमें हमें बच्चों को हर दृष्टि से देखने समझने और उनकी भावना को जानने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वह आत्महत्या जैसे दृष्टिकोण को खुद से हटा सके।धन्यवाद मैडम.💐💐

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