नैनीताल :::- 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस मनाया जाता है जिससे इंटरनेशनल हैप्पीनेस डे भी कहते है । इस वर्ष 2024 की संयुक्त राष्ट्र द्वारा थीम रिकनेक्टिंग फॉर हैप्पीनेस बिल्डिंग रेजिलिएंट कम्यूनिटीज रखा गया है ।खुश रहना हमारे मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है तथा दुनिया को खुशी के महत्व को बताने के लिए इसकी शुरुआत 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा की गई थी। 20 मार्च को दिन रात और दिन एक बराबर होते हैं। इस दिन यूएन अपना हैप्पीनेस इंडेक्स रिलीज करता है।खुशी जीवन को सुकून से बिताने के लिए भी जरूरी है और सेहत के लिए भी। जब आप प्रसन्न होते हैं तो सेहतमंद रहते हैं, साथ ही आसपास का माहौल भी खुशनुमा रहता है। हालांकि वर्तमान में खुश रहना थोड़ा मुश्किल होता हैऔर वक्त की कमी, दौड़ती भागती जिंदगी, थकान, चिंता के कारणों से लोग खुश नहीं रह पाते, जो कई समस्याओं की जड़ बन सकती है। खुशियों के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जुलाई 2012 को प्रसन्नता दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का संकल्प लिया। बाद में 20 मार्च 2013 से इंटरनेशनल डे ऑफ़ हैप्पीनेस की शुरुआत हुई। इस दिन लोगों को खुश रहने के महत्व के बारे में बताया जाता है। साथ ही खुश रहने के तरीके या उपाय भी समझाएं जाते हैं, ताकि व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्ति में सुकून महसूस कर सके और स्वस्थ जीवन बिता सके। अगर आप भी सुकून और खुशी की तलाश में हैं और खुशहाल जीवन चाहते हैं, तो जीवन को लक्ष्य से बाँधें, लोगों या वस्तुओं से नहीं”- एल्बर्ट आइन्स्टाइन। दुनिया कठोर, अनप्रेडिक्टेबल और भयानक हो सकती है। फिर भी कोविड के बाद हमारे लिए दयाभाव, उम्मीदों और एकजुटता ने हमें खुश रहने के महत्व का भी एहसास कराय।, इस दिन को ना सिर्फ खुद के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी खुशहाल बनाएं।फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल एवम खुशी वाला देश है, इसके बाद डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड और नॉर्वे हैं। भारत अभी पीछे है ।किंतु भारतीय संस्कृति इन सबसे भरी है ।जीवन में अपने काम के प्रति निष्ठा ,सार्थकता, सकारात्मकता जीवन को प्रफुल्लित करते है ।लोगो मै खुशी बाटना सबसे बड़ा मानवीय मूल्य है ।इसलिए सदा खुश रहें। आज ही विश्व गौरैया स्पैरो दिवस भी है जो हमे प्रकृति के प्रति संकेत करते है की गोइराय्य की संख्या लगातार घट रही है तथा हमारे प्रदेश सहित केरल ,गुजरात ,राजस्थान में अब ये केवल 20 प्रतिसत ही रह गए है ।जब समुंद्री इलाके में भी 50 प्रतिसत से कम रह गए है । इससे संरक्षित रखना समय की जरूरत है जो परिस्थिकतिकी के लिए भी जरूरी है।