भीमताल::::- कुमाऊँ विश्वविद्यालय, भीमताल परिसर के प्रबंधन अध्ययन विभाग में बुधवार से दो दिवसीय ‘लाइफ स्किल्स कार्यशाला’ का शुभारंभ हुआ। यह कार्यशाला पीएम-यूएसएचए (मेरु) पहल के अंतर्गत आयोजित की जा रही है, जिसमें एमबीए, फार्मेसी और बायोटेक्नोलॉजी विभागों के 155 छात्र-छात्राएँ भाग ले रहे हैं।
कुलपति प्रो. डी.एस. रावत ने छात्रों को शुभकामना संदेश प्रेषित किया। कार्यशाला की विशेषज्ञ कॉर्पोरेट ट्रेनर और नेतृत्व कोच सुश्री दामिनी जुयाल रहीं। उन्होंने विद्यार्थियों को संवाद कौशल, आत्मविश्वास, अंतरव्यक्तिगत संबंध, आलोचनात्मक चिंतन, समस्या समाधान और लचीलापन जैसे विषयों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया। जुयाल ने कहा जीवन कौशल कोई विकल्प नहीं बल्कि सफलता का मूल आधार हैं।
पहले दिन छात्रों ने भूमिका-अभिनय, समूह चर्चा और केस स्टडी गतिविधियों के माध्यम से टीम वर्क व विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का अनुभव किया। विद्यार्थियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए सत्रों को प्रेरक और आत्मविश्वासवर्धक बताया।
कार्यशाला का संचालन प्रो. अमित जोशी और प्रो. अर्चना नेगी शाह द्वारा किया जा रहा है। समन्वयक प्रो. ललित तिवारी ने बताया कि इस पहल का उद्देश्य विद्यार्थियों को अनुभवात्मक शिक्षा से जोड़कर उन्हें उद्योग की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करना है।
कार्यशाला के दूसरे दिन नेतृत्व क्षमता, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, समय प्रबंधन और टीम वर्क पर विशेष सत्र आयोजित होंगे। इस अवसर पर डॉ. लक्ष्मण रौतेला, डॉ. नरेंद्र कुमार, डॉ. दिग्विजय बिष्ट सहित अन्य प्राध्यापक उपस्थित रहे।





नमस्कार मैडम,
जैसे की आपने अपने आलेख में लिखा है कि कुमाऊं विश्वविद्यालय भीमताल परिसर के प्रबंध अध्ययन विभाग में बुधवार से दो दिवसीय लाइव स्किल कार्यशाला का शुभारंभ हुआ और और इसमें शुश्री जुवाल ने यह बताया कि अंतरव्यक्तिगत संबंध, आलोचनात्मक चिंतन, समस्या समाधान और लचीलापन जीवन में होना चाहिए और जीवन कौशल कोई विकल्प नहीं बल्कि सफलता का मूल आधार हैं। इसके अलावा मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा की एक बच्चे के पास एक स्वस्थ शरीर भी होना चाहिए क्योंकि जब स्वास्थ्य होता है तभी हम किसी चीज पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं दूसरा मैं, यह कहना चाहूंगा कि बच्चा मानसिक रूप से भी परिपक्व होना चाहिए ताकि वह भविष्य में आने वाली तकलीफों समस्याओं को अच्छे से समझ सके और उनका निवारण कर सके और बच्चा बौद्धिक रूप से भी तेज होना चाहिए ताकि वह समाज में उत्पन्न जटिलताओं को समझ कर खुद के जीने का इक अच्छा अवसर खोज सके और अपने व्यक्तित्व निखार भी निखार सके। अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि बच्चों के अंदर भावनात्मक मजबूती होनी चाहिए ताकि वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में भावनात्मक रूप से ना टूट सके और अपने जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं को झेलते हुए आगे बढ़ सके। धन्यवाद।